- डॉ शरद सिंह
मेरी क़लम की नोंक पर
ठहरी हुई
एक कविता
आतुर है काग़ज़ पर उतरने को
इस कविता में है-
'प्रसाद' की 'कामायनी'
प्रेमचंद की 'पूस की रात'
गुलेरी की 'सुबेदारनी'
कमलेश्वर का 'राजा निरबंसिया'
टॉल्सटॉय की 'अन्नाकरेनीना'
गोर्की की 'मां'
सर्वेंटीज का 'डॉन क्विकजोट'
और
शेक्सपियर की 'डेसडिमोना' भी
यह कविता
कर सकती है प्रेम
लड़ सकती है लड़ाईयां
सुला सकती है कायरता
जगा सकती है विद्रोह
यह कविता जाति, धर्म, रंग से परे
संवाद है
मनुष्य से मनुष्य का
यह कविता दिखा सकती है
व्यवस्था की ख़ामियां
शासन-प्रशासन की लापरवाहियां
इस कविता के पास
पांच उंगलियां और है एक अंगूठा
जिससे बन सकती है
तर्जनी भी और मुट्ठी भी
यह कविता
सिखा सकती है जीना
और आवाज़ उठाना
इसीलिए
यह कविता ठहरी है
कलम की नोंक पर
कि लोग तैयार हो जाएं
इसे पढ़ने के लिए
कुछ कर गुज़रने के लिए।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 30 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा अग्रवाल जी 🙏
ReplyDelete👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मनीष गोस्वामी जी
Deleteकुछ कर गुज़रने के लिए तैयार रहना चाहिए ... बेहतरीन भाव .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी
Deleteकवि ही अपनी कविता से भर सकता है भाव पाठक के मन में कुछ कर गुजरने के....
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।