घोषणाएं
- डॉ शरद सिंह
घोषणाएं
बनती जा रही हैं
एक चमचमाता हुआ पोस्टर
जो सक्षम है छिपाने में,
ध्यान बंटाने में
दीवार की बदसूरती से
लेकिन काम नहीं आता
ओढ़ने-बिछाने के भी
यानी
इस आपदा के दौर में भी
एक घोषणा सर्वसम्मति से
पारित हो कर भी
साल भर में नहीं पहुंच पाई
दफ़्तरों तक
तो क्या लाभ ऐसी घोषणा का
अविवाहित बेटियां
भटक रही हैं
और कर रही हैं प्रतीक्षा
घोषणा से जन्मे
आदेश की
भरण-पोषण की।
अरे , घोषणा करने वालों को
कोई तो बताए
कि सिर्फ़ घोषणाओं से
पेट नहीं भरता
घोषणाओं पर कर यक़ीन
आम-आदमी है
तिल-तिल मरता।
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जय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 25/05/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
पांच लिंकों का आनंद पर में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप ठाकुर जी🙏
Deleteगहरी रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप जी 🙏
Deleteवाह!लाजवाब!सही कहा आपने ,सिर्फ घोषणाओं से पेट नहीं भरता ।
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी 🙏
Deleteआप ठीक कह रही हैं। अब जनता की बेहतरी इसी में है कि वह घोषणाओं पर ऐतबार करना छोड़े।
ReplyDeleteजी नहीं जितेंन्द्र माथुर जी, मेरे विचार से घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने पर दबाव बनाने का काम करें जनता।
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