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26 April, 2021

मेरे अश्क़ तुझसे हैं पूछते | मुक्तक | डॉ शरद सिंह

मेरे अश्क़  तुझसे  हैं  पूछते
मेरा क्या गुनाह है मुझे बता
जो बता सको न मुझे कभी
करो और ग़म न मुझे अता
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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9 comments:

  1. इतना दर्द! लेकिन सवाल और गुज़ारिश माक़ूल।

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  2. ये गमों की बारिश है
    जो अक्सर आती है
    ये दुख का दरिया है
    जिसमें डूब डूब जाते हैं ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. उम्दा मर्मस्पर्शी सृजन शरद जी ।
    शानदार शेर कहा आपने।
    वाह!

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  5. बहुत सुंदर मुक्तक, शरद दी।

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  6. बहुत ही सुंदर, प्रभावशाली। ।।।

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