मेरे अश्क़ तुझसे हैं पूछते
मेरा क्या गुनाह है मुझे बता
जो बता सको न मुझे कभी
करो और ग़म न मुझे अता
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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इतना दर्द! लेकिन सवाल और गुज़ारिश माक़ूल।
ReplyDeleteये गमों की बारिश है
ReplyDeleteजो अक्सर आती है
ये दुख का दरिया है
जिसमें डूब डूब जाते हैं ।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteउम्दा मर्मस्पर्शी सृजन शरद जी ।
ReplyDeleteशानदार शेर कहा आपने।
वाह!
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर मुक्तक, शरद दी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, प्रभावशाली। ।।।
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