पृष्ठ

13 April, 2021

दहशत के बीच | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता


दहशत के बीच
      - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कुछ होने 
और कभी भी कुछ भी हो सकने की
दहशत के बीच
बहती हैं अनेक नदियां
पीड़ा की।
हज़ार मौत मरती है ज़िंदगी
उसकी - जो बीमार है
उसकी - जो बीमार के साथ हैं
बस, कुछ होने 
और कभी भी, कुछ भी 
हो सकने की दहशत के बीच
दिन पत्थर हो जाते हैं और
रातें गहरे काले धुएं-सी दम घोंटती हैं,
दवाओं की अचाही गंध
और स्लाईन की नलियों से बहती
जीवन धाराएं,
अस्पताल के एक बिस्तर पर 
संघर्ष जीवन और मृत्यु में
बस, कुछ होने 
और कभी भी, कुछ भी 
हो सकने की दहशत के बीच
थमा रहता है सब कुछ
घड़ी, उत्साह, उमंग, उल्लास
और सोई रहती है चैतन्यता
दहशत की चादर ओढ़ कर 

बस, कुछ होने 
और कभी भी, कुछ भी 
हो सकने की दहशत के बीच
समय भारी लगता है
किसी शिला की तरह।
         --------------

#दहशत #जीवन #मृत्यु #ज़िन्दगी #समय #शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh

7 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. पम्मी सिंह "तृप्ति" जी,
      आपको हार्दिक धन्यवाद कि आपने मेरी कविता को "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल किया है। यह मेरे लिए प्रसन्नतादायक है। 🌹🙏🌹

      Delete
  2. वाह! बहुत सुंदर रचना!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🌹🙏🌹

      Delete
  3. सच्ची .. शरद जी .. पता नहीं कैसा काल है ... हर तरफ दहशत का ही माहौल है ... सटीक अभिव्यक्ति .

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

      Delete
  4. जीवन के लिए संघर्ष कर रहे व्यक्ति से भी ज्यादा, वह समय उन व्यक्तियों की लिए अधिक भयावह होता है जो उसकी सांसों के संघर्ष से रूबरू होते पल -पल मरते हैं | यही है कडवा सच एक रुग्ण व्यक्ति के साथ होने वाले अपनों का |

    ReplyDelete