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16 December, 2020

हैशटैग कम्बल | डॉ शरद सिंह | कविता

हैशटैग कम्बल
- डॉ शरद सिंह

जाड़े की रात
पढ़ती है
कम्बल की पाती
गरमाते आखर के
कुछ ताने, कुछ बाने
बुनते हैं
नेह के बहाने,
उस पर 
फिर
यादों से
यादों को जोड़ते
हैशटैग चौखाने
कम्बल के ।
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2 comments:

  1. जाड़े की रात, कंबल और गरमाते आखर....
    अद्भुत रचना आदरणीया शरद जी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। ।।।।

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    1. हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी !!!

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