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17 November, 2020

पत्र ग़ैरों के | नवगीत | डॉ शरद सिंह

नवगीत
पत्र ग़ैरों के
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       - डॉ शरद सिंह

धूल पर 
   टिकते नहीं हैं 
       चिन्ह पैरों के ।

उंगलियों के बीच 
सूरज को दबाए 
रोशनी से 
कसमसाती नींद 
सिलवट छोड़ जाए 
   रास्ते बुनते रहे 
          संदर्भ सैरों के।

मौसमी मुस्कान 
होठों पर सहेजे 
आंसुओं से 
तरबतर रुमाल 
किसके पास भेजें 
डाकिया 
     लाया हमेशा 
           पत्र ग़ैरों के।
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#शरदसिंह  #DrSharadSingh #miss_sharad #नवगीत

9 comments:

  1. मौसमी मुस्कान
    होठों पर सहेजे
    आंसुओं से
    तरबतर रुमाल
    किसके पास भेजें
    डाकिया
    लाया हमेशा
    पत्र ग़ैरों के।
    सुन्दर!
    गूढ़ चिंतन शैली को प्रस्तुत करती रचना

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    1. हार्दिक आभार सधु चंद्र जी 🙏

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. प्रिय यशोदा अग्रवाल जी,
      अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे नवगीत को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' में शामिल किया।
      हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
      शुभकामनाओं सहित-
      डाॅ शरद सिंह

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  3. बड़ी ही सारगर्भित रचना...।थोड़े में ही बहुत कुछ कह दिया आपने..।शानदार..।

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  4. धूल पर
    टिकते नहीं हैं
    चिन्ह पैरों के ।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं चिन्तनपरक सृजन।

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  5. बहुत सुंदर सृजन।

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