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11 November, 2020

दिए बनकर जलेंगे | दीपावली गीत | डॉ (सुश्री) शरदसिंह

गीत
दिए बनकर जलेंगे
                   - डॉ (सुश्री) शरदसिंह

घोर तम में भी न हम गुम हो सकेंगे ।
हम दिवाली के दिए  बनकर जलेंगे ।

हो भले ही छल का जल खारा बहुत 
या,  हो  गहरी  स्वार्थ की धारा बहुत 
आस्था   के   सीप  का  मोती  बनेंगे 
हम दिवाली के  दिए  बनकर जलेंगे ।

दर्द का  इतिहास  ही  काफी नहीं है 
प्यार का  आभास  ही काफी नहीं है 
सत्य की, विश्वास की कविता लिखेंगे 
हम दिवाली  के दिए  बनकर जलेंगे ।

ये  अमावस  भी   ढलेगी,  भोर  होगी 
सूर्य की किरणों की जगमग डोर होगी 
चेतना  में   ज्योति  का  चंदन   मलेंगे 
हम दिवाली का दिया बनकर जलेंगे ।

श्रम न ठिठकेगा, न  हारेगा  कहीं भी 
मन प्रलोभन से न बहकेगा  कहीं भी 
संकल्प के पथ से  न अपने पग हटेंगे 
हम  दिवाली  के दिए  बनकर जलेंगे ।
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#Dipawali #HappyDiwali

2 comments:

  1. अंतिम छंद की दूसरी पंक्ति में सम्भवतः 'बहकेगा' शब्द आना चाहिए । बाकी यह आपका गीत न केवल समयानुकूल है शरद जी वरन उत्कृष्ट काव्य का ज्वलंत उदाहरण है । बहुत प्रतिभाशालिनी हैं आप, इस गीत को पढ़कर, अनुभूत कर एवं आत्मसात् कर के यह बात मैं निस्संकोच कह सकता हूँ ।

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  2. जितेंद्र माथुर जी,
    टाईपिंग की त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏
    काव्य पंक्तियों में एक भी शब्द या एक भी मात्रा त्रुटिपूर्ण होने से रसास्वादन में बाधा पड़ती है। अतः पुनः आभार 🙏🙏🙏

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