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29 January, 2020

वासंती दोहे - डॉ शरद सिंह

Basanti Dohe of Dr (Miss) Sharad Singh

वासंती दोहे 
- डॉ शरद सिंह

सपने वासंती हुए, रंगों से भरपूर। 
ऐसे में कोई रहे, क्यों अपनों से दूर।। 

खेतों में सरसों खिले, जंगल खिले पलाश ।
खजुराहो की भांति ऋतु, किसने दिया तराश ।।

दुख के दड़बे से निकल, सुख के दो पग नाप ।
पहले से दूना लगे, खुद को अपना आप ।।

तोता मैना कर रहे 'ऋतुसंहारम्' याद ।
 मौसम ने जो कर दिया, पोर-पोर अनुवाद ।।

उसी राह मिलने लगे महके हुए बबूल।
जिस पर चलने से चुभे, विगत वर्ष में शूल।।

कागज कलम दवात का आज नहीं कुछ काम ।
संकेतों से व्यक्त है मन की चाहत तमाम ।।

आशाओं की देहरी जाग रही है आज ।
आहट गुजरी थी अभी देकर इक आवाज़ ।।

बसंती दोहे 'शरद' खोलें दिल के राज़। 
अपनापन मिलता रहे, चलते रहें रिवाज़।।

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