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28 September, 2019

वरना वो भी सुधर गया होता ( ग़ज़ल )... डॉ शरद सिंह

 
Varna Vo Bhi Sudhar Gaya Hota ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh
  
ग़ज़ल
 
 - डॉ शरद सिंह
 
अश्क़ आंखों से  बह गया होता
दिल का दरिया उतर गया होता

ग़म को  रक्खा है  बंद  मुट्ठी में
वरना सब पे  बिखर गया होता

गर   कोई  इंतज़ार  करता तो
शाम  होते  ही  घर  गया होता

उसकी मां ने  उसे नहीं डांटा
वरना वो भी  सुधर गया होता

वो 'शरद' को अगर समझ लेता
दुश्मनी को बिसर गया होता
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3 comments:

  1. हर एक शेर कमाल है

    गर कोई इंतज़ार करता तो
    शाम होते ही घर गया होता

    वाह वाह
    बहुत ही लाजवाब शेर है। मजा आ गया पढ़के।
    आपके ब्लॉग तक पहली बार आया हूँ। बहुत अच्छा लगा। हम भी लिखते हैं थोड़ा बहुत
    आप भी पधारें हमारे ब्लॉग तक शून्य पार 

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक भाव लिए हर अश्आर।
    वाह्ह्ह्।

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