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10 May, 2019

कुछ और भी ज़्यादा .. ( ग़ज़ल ).. - डॉ शरद सिंह

Kuchh Aur Bhi Jyada ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh

 ग़ज़ल 

हमें देखा तो जागी खलबली कुछ और भी ज़्यादा
क़रीबी ही  निभाते  दुश्मनी  कुछ और भी ज़्यादा



हमारे ही खि़लाफ़त में खड़े हैं ख़्वाब कुछ अपने
बढ़ी है इस तरह तो तीरगी कुछ और भी ज़्यादा

सियासत की नज़र में चढ़ गए कुछ रंग भी जब से
हमें  भाने  लगी  है  सादगी   कुछ और भी ज़्यादा

बड़ी मुद्दत हुई है   एक  ख़त भी  हाथ  में आये
इधर आने लगे  ई-मेल ही  कुछ और भी ज़्यादा

‘शरद’ ये सोचती, क्या हो गया है आज ख़बरों को
परोसी जा  रही  है  सनसनी  कुछ और भी ज़्यादा

- डॉ शरद सिंह

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