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04 April, 2019

मेरे ख़्वाबों के शहर का (ग़ज़ल) ... - डॉ शरद सिंह

Mere Khwabon Ke Shahar Ka ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh

ग़ज़ल


मेरे ख़्वाबों के शहर का जो है पता तुझको
ज़रा बता भी दे अब उसका रास्ता मुझको

तू भी मिल-मिल के जमाने से आजमाता है
चाहता है जो सताना, तो फिर सता मुझको

तू  नज़ूमी  की  तरह  बांचता  रहता है मुझे
मेरी तक़दीर में लिक्खा है क्या, बता मुझको


क्यूं लरज़ता है, झिझकता है, सहमता है भला
इश्क़ तुझको जो है मुझसे, तो ये जता मुझको 


बंद  बक्से  में   रखे   ख़त  की  तरह  क्या जीना
कर दे इक बार तो खुल के भी कुछ अता मुझको


- डॉ ( सुश्री ) शरद सिंह

6 comments:

  1. Replies

    1. हार्दिक धन्यवाद संजय भास्‍कर जी !!!

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (6-04-2019) को " नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं " (चर्चा अंक-3297) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    अनीता सैनी

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    1. प्रिय अनीता सैनी जी,
      मेरी ग़ज़ल को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार !!!

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  3. Replies

    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी !!!

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