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05 July, 2012

तुम कहो ....


22 comments:

  1. बहुत प्यारी पंक्तियाँ...

    सादर
    अनु

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  2. अषाढ़ गया, सावन लग गयो,
    प्रियतम ने भी सुधि न लियो
    गरजत बद्ररा में हुक उठति है,
    प्ररदेश में जाकर भूल गयो है,,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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    1. चर्चा मंच पर है यह टिप्पणी -

      राधा मन को शरद ही, भावे गोकुल वीर |
      मिलन आस हो बलवती, बाकी समय अधीर ||

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  3. बहुत उम्दा पंक्तियाँ...!

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  4. सावन सा स्पर्श, वाह, बहुत सुन्दर..

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  5. बिल्कुल सामयिक चित्र, लगता है इस बार सावन थोडा रूठा हुआ है, शायद जल्द ही जमीन पर बरसने भी लगे. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. खुशियों भरा सावन आये
    चहुँ ओर हरियाली छाये ,शरद जी ,सुंदर चित्र

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  7. sach me sawan ka sparsh man bhi haraa kar detaa hai ...
    sundar abhivyakti ...
    shubhkamnayen..

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  8. यह है शुक्रवार की खबर ।

    उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।

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  9. सब कह तो रहे हैं
    सुंदर है बहुत
    हम बस देख रहे हैं
    कह कुछ नहीं रहे हैं !

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  10. bas thoda aur intzar karo sab hara-hara hone wala hai.

    sunder prastuti.

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  11. सुन्दर सामयिक पंक्तियाँ बहुत खूब

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  12. बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद के साथ-साथ आपको सावन की शुभकामनाएं।

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  13. वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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  14. सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति ...!

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  15. सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति ...!

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  16. जी... क्या बात कह दी आपने, वाकई में कभी-कभी जब जीवन में कुछ पीछे छूट जाता है... या कोई रूठ जाता है तो हरा दिखता ही नहीं है.... चाहे वह सावन ही क्यूं न हो.....?

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