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20 June, 2012

तेरे मेरे बीच की .....


28 comments:

  1. सुन्दर पंक्तियाँ सुन्दर चित्र ।

    बधाई डाक्टर साहिबा ।।

    क्षमा सहित -

    देखें सुन्दर चित्र तो, लगता बड़ा विचित्र ।

    ताक रहा अपलक झलक, मनसा किन्तु पवित्र ।

    मनसा किन्तु पवित्र, झलकती कैंडिल लाइट ।

    किरणें स्वर्ण बिखेर, करे हैं फ्यूचर ब्राइट ।

    दूर बसे सौ मील, मीत कर्मों के लेखे ।

    ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे ।।



    टिप्पणी मात्र है -

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  2. तुझ में मुझ में कितनी दूरी.

    फिर भी मिलती श्वासें पूरी.

    तुम बिन मिलकर मिल जाती हो.

    तुम हो किस-किसकी मजबूरी.

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार....

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  4. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार...

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  5. Replies
    1. प्रतिक्रिया देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  6. बहुत खूब...सुन्दर प्रस्तुति.

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  7. आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए आभारी हूं...

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  8. आपका स्नेह मेरे दोहे को मिला..यह मेरा सौभाग्य है.

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