पृष्ठ

30 August, 2010

औरत होने का मतलब ?

- डॉ. शरद सिंह
रोज़ सुबह अख़बार उठाते ही सबसे पहले जिस समाचार पर ध्यान जाता है, वह होता है राजनीतिक समाचार। उसके बाद जो दूसरी ध्यानाकर्षण करने वाली ख़बर होती है, वह होती है औरत पर केन्द्रित। मसलन-आग से जलने पर महिला की मौत, नवयुवती ने फांसी लगाई, मां ने बच्चों सहित कुए में कूद कर जान दी, दहेज को ले कर हत्या, प्रताड़ित महिला द्वारा खुदकुशी आदि-आदि। देश की आजादी के वर्षों बाद भी हादसों के समाचार औरतों के ही खाते में है।
             एक विदेशी महिला से छेड़छाड़ की घटना लखनऊ में घटी। पणजी से भी एक विदेशी महिला के साथ बलात्कार का मामला प्रकाश में आया। पुष्कर में भी बलात्कार का शिकार बनी एक विदेशी महिला। सवाल ये नहीं है कि महिला विदेशी थी या स्वदेशी? सवाल ये है कि महिलाओं के साथ ऐसे हादसे संस्कृति के धनी भारत में क्यों बढ़ते जा रहे हैं, उस पर हद तो ये कि 31 दिसम्बर2007 की काली रात को दो अनिवासी भारतीय महिलाओं को भीड़ की हैवानियत का शिकार होना पड़ा। टी.वी. चैनल्स पर उस हैवानियत को बार-बार दिखाया गया किन्तु क्या उस घटना के विरोध में किसी भी राजनीतिक दल अथवा सामजिक संगठन ने कोई देशव्यापी मुहिम छेड़ी, नहीं, छोटी-मोटी नेतागिरी के अलावा कोई ऐसा ठोस क़दम नहीं उठाया गया जो इस दिशा में प्रभावी परिणाम दे पाता। उस पर दुर्भाग्य यह कि कुछ एक नामी संगठनों ने कहा कि यदि औरतें पश्चिमी शैली के कपड़े पहनेंगी तो उनके साथ ऐसी घटनाएं होंगी ही। ऐसी बयानबाजी करने वाले उन घटनाओं को भूल जाते हैं जो खेत में काम करने वाली अथवा गांव में शौच के लिए बाहर जाने वाली सोलह हाथ की साड़ी और घूंघट में लिपटी औरत के साथ घटित होती हैं। उन घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन होता है?
एक ओर यह माना जाता है कि ‘सर्वत्र नारी की पूजा होनी चाहिए‘ और वहीं दूसरी ओर देश में प्रति घंटे 18 से बीस महिलाएं यौनहिंसा का शिकार होती हैं जिनमें से चार से छः महिलाएं बलात्कार की शिकार होती हैं। आंकड़े भयावह हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॅार्ड ब्यूरो के अनुसार 1971 की तुलना में 2007 तक देश में बलात्कार की घटनाओं में सात सौ प्रतिशत तक वृद्धि हो चुकी है। ब्यूरो के ये आंकड़े उन पूरे आंकड़ों की जानकारी नहीं दे पाते हैं जो थानों में दर्ज़ ही नहीं हुए। न जाने कितनी शिष्याएं अपने गुरुओं की हवस की शिकार होती रहती हैं न जाने कितनी नर्सें चिकित्सकों के हाथों लुटती रहती हैं और मात्र कामकाजी क्षेत्र में ही नहीं, घर की चारदीवारी के भीतर रिश्तों को कलंकित करने वाली हैवानियत का तांडव चलता रहता है जो आंकड़ों से परे है। औरत की रक्षा-सुरक्षा के लिए कानून बहुत से हैं लेकिन उस समय कानूनों की धज्जियां उड़ते साफ़-साफ़ देखने को मिल जाती हैं जब पुलिस वाले ही थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करने में हीलहवाला करते नज़र आते हैं। 31 दिसम्बर 2007 की घटना इसका एक उदाहरण कही जा सकती है।
क्यों बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं? जैसे-जैसे औरतें बहुमुखी प्रगति कर रही हैं वैसे-वैसे उनके विरुद्ध हिंसा भी बढ़ती जा रही हैं। आखिर कमी कहां है? किसमें है?औरतों में या पुरुषों में? आखिर इन्हीं दोनों से मिल कर तो बना है समाज। इस समाज में पुरुष का दर्जा हमेशा पहले नंबर पर रहा है। देश की विस्फोटक जनसंख्या में औरतों की आबादी अभी पुरुषों के बराबर नहीं तो आधी से तो अधिक ही है। कुछेक क्षेत्रों में स्त्री नेतृत्व को देखते हुए यह मान लेना बेमानी होगा कि औरतें अब जागरूक हो गई हैं। यदि ऐसा होता तो किसी मोटर कारखाने की स्थापना से कहीं अधिक विरोध किया जाता उन तमाम हिंसाओं का जो औरतों के विरुद्ध की जाती हैं।
दरअसल बचपन से ही यह भेदभाव स्थापित कर दिया जाता है। बेटा है तो वह बाहर जा कर खेल सकता है, बाहर जा कर पढ़ सकता है, हाट-बाज़ार में मस्ती से घूम सकता है, यहां तक कि उसे अपनी बहन की अपेक्षा अच्छा खाना, कपड़ा और लालन-पालन मिलता है। बेटी को यह सब नसीब होना कठिन है। उसे खेलने के लिए गुड़ियां दी जाती हैं, अपने छोटे भाई-बहनों की परवरिश करने की शिक्षा दी जाती है और चूल्हा-चौका तो उसके भविष्य के साथ बंाध ही दिया जाता है। घरों में जब माता-पिता अपने बच्चों के लिए खिलौने ले कर आते हैं तो उसमें बेटे के लिए क्रिकेट का बल्ला, हॅाकी स्टिक, मोटर, बाईक या एके-47 राईफल का खिलौना होता है लेकिन बेटी के लिए घर-गृहस्थी के सामानों के खिलौने जैसे गैसस्टोव, क्रॅाकरी, गुड़िया, पेंटिग या कशीदे का सामान। बेटों के मन में यह बात बचपन से बिठा दी जाती है कि तुम बेटियों से बढ़कर हो, तुम्हारे सौ खून माफ़ हैं। यही बेटे जब बड़े हो कर पुरुषत्व धारण करते हैं तो औरतों पर शासन करना अपना जन्मजात अधिकार समझते हैं।
         देखा जाए तो ऐसे बेटों से कहीं अधिक दोषी वो मांए होती हैं जो अपने बेटों को ऐसे पुरुष के रूप में विकसित करती हैं जिनमें औरतों पर अधिकार करने का जुनून होता है। कहीं न कहीं स्वयं औरत भी दोषी है पुरुषों की हिंसा के मामले में। यह ठीक है कि औरतों को धर्मभीरु बनाया गया, उसके पुरुषों के पीछे-पीछे सिर झुका कर चलने वाली बनाया गया, पति को ईश्वर मान कर उसकी पूजा-स्तुति करने वाली बनाया गया किन्तु इन सारे ढांचों को आज भी वह स्वेच्छा से अपने इर्द-गिर्द लपेटे हुए है। औरत आज जानती है कि चन्द्रमा का स्वरूप क्या है, वह एक निर्जन उपग्रह मात्र है, वह भी पृथ्वी का उपग्रह, फिर भी हर साल करवां चौथ को वह निर्जला व्रत रखती है और चलनी से चन्द्रमा को देख कर पति की लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। करवा चौथ आते ही औरतों द्वारा उसे मनाए जाने की धूम मच जाती है लेकिन यह कभी सुनने में नहीं आया है कि किसी पति ने अपनी पत्नी को इस लिए पीटा हो या उससे संबंध विच्छेद किए हो कि उसने उसकी लम्बी उम्र के लिए करवां चौथ का व्रत नहीं रखा।
दहेज लेने, उसका प्रदर्शन करने, दहेज संबंधी ताना मारने और दहेज कम मिलने या बिलकुल न मिलने पर सबसे पहले औरत ही नाम आता है। दहेज के लिए अकेले ससुर ने बहू को शायद ही कभी जलाया हो लेकिन जब भी बहू को जलाए जाने की घटनाएं घटती हैं तो वह सास की पहलक़दमी पर ही घटती हैं। बहू बन कर विदा होती बेटी को भी यही घुट्टी पिलाई जाती है कि अब दोनों कुल की मर्यादा तेरे हाथ में हैं। गोया दोनों कुल की मर्यादा निभाने में वर का कोई दायित्व ही न हो। जो बहुएं कुछ ज्यादा ही घुट्टी पी कर आती हैं वो मरते-मरते भी यही कहती हैं कि उनका जलना महज एक दुर्घटना थी।
                 गर्भ में पलने वाले मादा भ्रूण को गर्भ से निकाल फेंकने के लिए होने वाली मां रूपी औरत जाती है, उस मां की सास या कोई और संबंधित महिला उसके साथ जाती है और गर्भपात कराती है एक अन्य औरत। अब वे चाहे किसी भी बाध्यता का नाम लें लेकिन सच तो ये है कि अभी औरतों ने खुद ही अपनी शक्ति, अपने अस्तित्व और अपने दायित्वों को भली-भांति नहीं समझा है। औरत होने का मतलब ये नहीं है कि वह घर बसाए, शादी करे, बच्चे पैदा करे, नौकरी भी करे तब भी चूल्हे-चौके की सभी जिम्मेदारियों को निभाए और आंख मूंद कर पुरुष प्रधान परम्पराओं को मानती रहे। दरअसल औरत होने का मतलब यही है कि अब औरत, औरत के पक्ष में अर्थात् खुद के पक्ष में खड़ी हो कर सारी बातों को गौर करे और अपने बचाव के रास्ते स्वयं निर्धारित करे।

28 comments:

  1. vaah, sharad aur varsha...
    dono bahano ka blog dekh kar
    pankaj ka man harshaa.
    shubhkamane. ab bhet hotee rahegee.

    ReplyDelete
  2. शरद जी , वर्षा जी के ब्लाँग से सफ़र करता यहां पहुंचा-आपने सदा की तरह सच लिखा,वाकई औरत ही औरत की पारिवारिक प्रताड़ना का विशेष कारण बन रही है, रहा यौन- अपराध वे तो क्षमायोग्य हैं ही नहीं,पर कानून से ज्यादा सामाजिक जागरूकता की जरूरत है-कानून क तो दुर्पयोग दुधारी है- आजकल दहेज- घरेलू हिंसा का दुर्पयोग धाकड़ किस्म की महिलाओं द्वारा काफ़ी आम हो गया है ,मेरे अपने अनुभव २ देखें
    १- मेरे ड्राइवर के बेटे की पत्नी ने विवाह के दो महीने बाद सास से कहा ,‘न्यारी करैगी अक भीतर जागी- यानि बंटवारा कर अलग करो
    या जेल जाओगी,
    २- एक इन्जिनियर के बेटे ने अपने पिता द्वारा २० लाख न देने पर अपनी पत्नी से सास ससुर पर दहेज प्रताड़ना का केस पुलिस में करवा दिया और पैसे प्राप्त किये

    ReplyDelete
  3. यह बैरी word verification हटाएं
    टिप्पणीकार को मुसीबत से निजात दिलाएं

    ReplyDelete
  4. श्याम सखा जी, मैंने मुसीबत से निजात दिला दी है. पुनः स्वागत है.

    ReplyDelete
  5. अब औरत, औरत के पक्ष में अर्थात् खुद के पक्ष में खड़ी हो कर सारी बातों को गौर करे और अपने बचाव के रास्ते स्वयं निर्धारित करे।आपकी बातें सही में गौर करने वाली है..पर कुछ बातें कुछ शब्द मात्र बन के रह जाती है...हमारे सरोकार अलग और अपने अपने होते है..हमें क्या कह के हम आसानी से हर चीज़ से आँखे मूँद लेते है...

    ReplyDelete
  6. a nice one thinking! I realy agree with you, Sharad!

    ReplyDelete
  7. आदरणीया शरद सिंह जी , सादर नमस्ते,
    आपकी वैचारिक दुनिया से अवगत नई दुनिया में होता रहता हूँ।
    आपका लेखन गज़ब का है। आज आपके ब्लाॅक का पता चला मेरे ब्लाॅक पर आपकी छोटी-सी फोटू देखकर। आप अचछा लिखती है बधाई।

    ReplyDelete
  8. हार्दिक धन्यावाद, रमेश प्रजापति जी!आप भी अच्छा लिखते है। आपके विचारों का सदा स्वागत है।

    ReplyDelete
  9. शरद जी,
    आपकी पिछले 'पन्ने की औरतें' मैंने पढ़ी है. इस पोस्ट में भी आप का सार्थक चिंतन झलक रहा है.
    चूँकि आप साहित्य और ब्लॉगिंग दोनों में सामान रूप से सक्रिय हैं इसलिए आपकी लेखनी को प्रणाम करता हूँ.

    ReplyDelete
  10. सोमेश सक्सेना जी,
    हार्दिक धन्यवाद!

    यह जान कर प्रसन्नता हुई कि आपने मेरक उपन्यास ‘पिछले पन्ने की औरतें’ पढ़ा है। स्त्री विमर्श पर मेरी पुस्तक ‘पत्तों में क़ैद औरतें’ भी पढ़ कर अपने विचारों से अवगत कराएं...मुझे विश्वास है कि आपको मेरी यह पुस्तक भी पसंद आएगी।

    ReplyDelete
  11. sharad singh ji mujhe apar khushi hui ki aapne mere kbitaaon ko saraha....maidm mujhe aapke blog bahut acche lage...aapko aapki safaltaao pe hardik badhai dena chahti hu.......plz mera marg d

    ReplyDelete
  12. dharshn karti rahe...truttiyon ke lie kshma chahti hu....dhanybaad....

    ReplyDelete
  13. आरती झा जी,
    आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
    हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें ....आपका सदा स्वागत है।

    ReplyDelete
  14. sabhi racnayein bahut hi sunder hai
    hum abhi naye aye hai blog per to thora bahut likh par lete hai jyada nahi aata hai

    ReplyDelete
  15. aparadh me mera koyi dosh nahin

    phir bhi main doshi bani

    Kartar ne hi andha kiya

    per akho par ashru diya

    ReplyDelete
  16. Dr.sharad singh ki sampurna samagree tan man ko jhankrit karti hai.

    anjani anek baaton ko sarthak baparda karti hai.

    ham logon ki pran vayu-daana-paani sab lagta ismein,

    jal prawah ka marg prashast banati si lagti-janchti hai.

    -RAGHUNATH MISRA,ADVOCATE,3-k-30,TALWANDI,KOTA-324005(RAJASTHAN)PH:0744-2430201,MOB:09214313946

    E-mail: raghunathmisra@ymail.com

    ReplyDelete
  17. Dr.sahib maaf karen,meri tippari mein sahvan se dusari pamkti "beprda ki jagah "baparda"print ho gaya hai.Anyath na len.

    -RAGHUNATH MISRA

    ReplyDelete
  18. कल 26/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  19. यशवन्त माथुर जी,
    नयी पुरानी हलचल पर मेरे इस लेख को लिंक करने के लिए हार्दिक धन्यावाद...

    ReplyDelete
  20. निशा महाराणा जी,
    यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  21. गंभीर विषय पर सार्थक आलेख्।

    ReplyDelete
  22. बेहद सार्थक व सटीक लेखन आभार ।

    ReplyDelete
  23. वन्दना जी,
    आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।
    हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  24. सदा जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  25. sach kahu to aaj wo sab padha jo kahi man ke bheetar tees raha tha...
    thank you so much Sharad ji, in saari baaton ko likhne ke liye...
    kyonki mai sirf aisi khabaro ko sun Maa ko chintit hote dekhti thi, unhe likh nahi paa rahi thi, likha tha par sirf ek kavita ke roop mein... jald hi post karungi...
    parantu jis tarah aapne vishleshan kiya hai, mai to kabhi bhi nahi kar paati...

    ReplyDelete