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18 February, 2021

कभी घर नहीं मिला | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | ग़ज़ल संग्रह | पतझड़ में भीग रही लड़की

Dr (Miss) Sharad Singh

ग़ज़ल

कभी घर नहीं मिला

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


छप्पर नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला।

मानो यक़ीन, मुझको कभी घर नहीं मिला।


जिसमें लिखा सकूं मैं रपट, खोए  चैन की

पूरे  शहर में  एक  भी  दफ़्तर नहीं मिला।


आंखों की  झील में  हैं  कई कश्तियां बंधीं

उतरे जो  पार, कोई  मुसाफ़िर  नहीं मिला।


पिछले पहर की धूप भी  कानों में  कह गई

जब-जब किया तलाश, वो घर पर नहीं मिला।


उठने लगी  हैं  उंगलियां, जब से  हरेक पर

पैरों में  तब से  एक  भी  झांझर  नहीं मिला।


अकसर मिली है धूप   मुझे  राह में  ‘शरद’

राही तो  मुझसे एक भी आ कर नहीं मिला।


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)


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25 comments:

  1. अकसर मिली है धूप मुझे राह में ‘शरद’

    राही तो मुझसे एक भी आ कर नहीं मिला।

    वाह..बहुत खूबसूरत शेर..

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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  2. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है यह शरद जी आपने ।

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    1. बहुत शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  3. आंखों की झील में हैं कई कश्तियां बंधीं

    उतरे जो पार, कोई मुसाफ़िर नहीं मिला ।

    वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

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  4. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
    "कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    1. मीना भारद्वाज जी,
      चर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
      चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना सदैव सुखकर लगता है। आपको हार्दिक धन्यवाद🌹 🙏🌹

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  5. अति सुन्दर सृजन एवं भाव ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अमृता तन्मय जी 🌹🙏🌹

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुमन जी 🌹🙏🌹

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  7. वाह!गज़ब का सृजन।
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  8. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. बहुत शुक्रिया ओंकार जी 🌹🙏🌹

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  9. मन में गहरे तक उतरती ग़ज़ल शरद जी ,हर शेर खास हर शेर उम्दा।
    बेहतरीन सृजन।

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    1. दिली शुक्रिया कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹

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  10. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आलोक सिन्हा जी 🌹🙏🌹

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  11. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शांतनु सान्याल जी 🌹🙏🌹

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  12. उठने लगी हैं उंगलियां, जब से हरेक पर

    पैरों में तब से एक भी झांझर नहीं मिला।

    वाह !!एक-एक शेर लाजबाब,सादर नमन शरद जी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹

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