![]() |
Dr (Miss) Sharad Singh |
नवगीत
राह को गोपन
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
देह का बोझा
उठाए
अब नहीं उठता।
पेट में है
भूख की चटकन
सीवनों-सी कस गई बांहें
लूटता है
राह को गोपन
एक अंगारा
बुझाए
अब नहीं बुझता।
झोपड़ी के
द्वार में सूखा,
खेत का महका हुआ यौवन
खा गया है
मौसमी धोखा
बिम्ब हरियाला
उगाए
अब नहीं उगता।
पंछियों के
पर हुए टुकड़े
अब हवाओं से उलझता कौन
हर किसी के
व्यक्तिगत दुखड़े
चैन परदेसी
रुकाए
अब नहीं रुकता।
-----------
(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
#नवगीत #नवगीतसंग्रह #आंसू_बूंद_चुए #हिन्दीसाहित्य #काव्य #Navgeet #NavgeetSangrah #Poetry #PoetryBook #AnsooBoondChuye #HindiLiterature #Literature
वाह!अद्भुत
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹
Deleteमीना भारद्वाज जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने मेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल किया है।
आपको हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
वाह!लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteसादर
दिली शुक्रिया अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह बेहतरीन 👌👌
ReplyDeleteबहूत सुंदर
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteझोपड़ी के
ReplyDeleteद्वार में सूखा,
खेत का महका हुआ यौवन
खा गया है
मौसमी धोखा
बिम्ब हरियाला
उगाए
अब नहीं उगता।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी नवगीत।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहर पंक्ति दिल में उतरती हुई
उम्दा रचना
मन की तलहटी में उतर गए हैं इस नवगीत के शब्द ।
ReplyDeleteशरद जी बहुत ही मधुर गीत है यह आपका |
ReplyDelete