विशुद्ध प्रेम
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
भावनाओं की नौका
पर सवार
विश्वास की पतवार
को थाम कर
विरोध की असंख्य
जलधाराओं को
पार कर
निज को छोड़ कर पीछे
समर्पण और
परवाह की पूंजी लिए
जहां पहुंचता है
एक केवट-हृदय
वही तो तट है
विशुद्ध प्रेम का।
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सुंदर
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