हे सूरज !
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हे सूरज! मेरी पृथ्वी की रक्षा तुम करना
कोरोना के इस संकट में दुख सारे हरना
शिथिल हो चले जीवन बंधन को थामे रहना
प्राणवायु से हर मानव के जीवन को भरना
मानवत्रुटि मानव पर भारी हर पल है दिखती
एक क्षमा का अवसर मानव के हाथों धरना
निज दुख छोटा हुआ जा रहा मानव-दुख के आगे
शोकग्रस्त मानवता के हर दुख को कम करना
"शरद" प्रार्थना करती है, हर संभव तुम करना
सूर्य ! प्रखरता से अपनी, हर पीड़ा को हरना
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निज दुख छोटा हुआ जा रहा मानव-दुख के आगे। आपकी भावनाएं स्तुत्य हैं शरद जी। आपकी प्रार्थना में समष्टि का हित निहित है।
ReplyDeleteजी,माथुर जी ! मनःस्थिति विचलित है...
Deleteबस, प्रार्थना की शक्ति को आजमा रही हूं 🌹🙏🌹
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-०४-२०२१) को 'मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे'(चर्चा अंक- ४०४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता सैनी जी,
Deleteइन अतिविपरीत परिस्थितियों में चर्चा मंच की जीवंतता एवं आत्मीयता स्तुत्य है।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
इस प्रार्थना में हम भी साथ हैं ....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी ...
Deleteसम्वेत प्रार्थना शायद शीघ्र फलीभूत हो 🌹🙏🌹
हमारी प्रार्थना स्वीकार हो प्रभु को और ये दुःख के बदल छट जाए....
ReplyDeleteऐसा ही कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteआज हर मन की ईश्वर से यही प्रार्थना है
ReplyDeleteजी हां, अनीता जी...🌹🙏🌹
Deleteआपकी प्रार्थना में हम भी शामिल हैं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी ...
Deleteसम्वेत प्रार्थना शायद शीघ्र फलीभूत हो 🌹🙏🌹
बहुत सुंदर शरद जी परहिताय ये प्रार्थना तेजोमय आदित्य अवश्य सुनेगा।
ReplyDeleteसुंदर कोमल भाव।
हार्दिक धन्यवाद कोठारी जी ...
Deleteसम्वेत प्रार्थना शायद शीघ्र फलीभूत हो 🌹🙏🌹