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22 September, 2017

स्मृतियां ... डॉ शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

स्मृतियां
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एक सीढ़ी की पायदान ही तो हैं
स्मृतियां
जो ले जाती हैं मुझे
ऊंचे, बहुत ऊंचे
बादलों से भी ऊपर
सातों आसमानों से भी ऊपर
जहां रहता है सफेद घोड़े वाला राजकुमार
और लंबे बालों वाली राजकुमारी
रहती है एक सुंदर परी भी
एक राक्षस, एक तोता भी
खड़ा है वहां एक महल
बसी है वहां एक बस्ती
उस झरने के क़रीब
जिसमें देखा-सुना है मछलियों को बतियाते

आज भी सुनती हूं मछलियों की हंसी
झरने की कल-कल
और मन करता है चढ़ जाने को सीढ़ी
जहां बचपन का कैनवास
सहेजे हुए है रंगों को ठीक वैसे ही जैसे
सहेज रखा है स्मृतियों ने मुझे
जीवन के कई पायदान चढ़ने के बाद भी।

- डॉ. शरद सिंह

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12 September, 2017

परिष्कृत प्रेम ... डॉ शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh
परिष्कृत प्रेम
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मन
बांचता है जब
प्रेम की ऋग्वेदी ऋचाएं
खुल जाते हैं दस मण्डलों से
दस द्वार
या फिर खिलखिला उठती हैं
चौंसठ अध्यायों सी चौंसठ कलाएं

यजुर्वेदी तन होना चाहता है श्रमशील
पर हो नहीं पाता

सामवेदी तरंगे
बन कर राग-रागिनियां फूट पड़ती हैं
एक-एक शिराओं से

सांसारिक कर्मकाण्डों का अथर्ववेद
गढ़ता हो भले ही नई परिभाषा
किन्तु
वैदिक अनुभूतियां नाच उठती हैं पूरे वेग से
और तभी
प्रेम हो जाता है परिष्कृत।

- डॉ. शरद सिंह

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