02 January, 2021

दुखी-कंगाल से | आंसू बूंद चुए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह

Dr (Miss) Sharad Singh


दुखी-कंगाल से

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


दिन सिकुड़ कर

हो गए

रूमाल से।


भीत से

फिसला हुआ चंदा

देहरी पर

कब तलक ठहरे

रात के

अंधे कुओं के गम

हो गए हैं

और भी गहरे


सब यहां जकड़े

हुए

जंजाल से।


चाह का

कमजोर-सा पंछी

भूख से फिर

सिर यहां पटके

जिन्दगी

पढ़ने लगी ‘गीता’

आस के राही

बहुत भटके


स्वप्न भी लगते

दुखी-

कंगाल से।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah

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